
ये किस उधेड़बुन में उलझा रही हो मुझे,कभी दो कदम आगे,तो कभी ढाई कदम पीछे,क्यो जीवन को ‘शतरंज की बाजी’बना रही हो तुम,चलो तुम जीती,मैं हार जाता हूँ,तुम अपनी जिद वही रखो,मैं अपना सर झुकाता हूँ,कभी तो हाथ मे मेरी, तुम अपना हाथ भी दे दो,कदम संग- संग बढ़ाओ,थोड़ी दूरी साथ तो दे दो…चलो कोई […]
शतरंज की बाज़ी…